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बिहार की शिक्षा व्यवस्था को अंगूठा दिखा नेपाल में पढ़ रहे हैं भारतीय बच्चे

नेपाल की ओर से आ रही बस

बिहार संवादाता :-
भारत के पड़ोसी राष्ट्र नेपाल से प्रतिदिन अवैध तरीके से स्कूली बस भारतीय सीमा में प्रवेश कर नेपाल सीमा से सटे गलगलिया बाजार से दर्जनों बच्चों को नेपाली पाठ्यक्रम और नेपाल की सभ्यता, संस्कृति की शिक्षा ग्रहण करने को मजबूर । जानकारों की मानें तो इससे सिर्फ बच्चों में नौनिहालों के भारतीय सभ्यता और संस्कृति का ज्ञान अधूरा नहीं रहेगा, बल्कि कहीं ना कहीं से सीमावर्ती क्षेत्र के बच्चों में देश देश भक्ति एवं बुनियादी ढांचे और देश की सभ्यता और संस्कृति से भी दूर हो जायेंगे । सूत्रों की माने तो मिल गई बच्चों के बिहार सरकारी स्कूल में नाम दर्ज है, फिर सवाल यह उठता है कि अगर यह बच्चे नेपाल जा रहे हैं पढ़ने के लिए तो उनके नाम पर आखिर कौन से बच्चे पढ़ते हैं और किस बच्चे को सरकारी योजनाओं का लाभ मिलता है,
वही जब इस संबंध में प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी सुनैना कुमारी से बात दुर्भाग्य के माध्यम से की गई, तो उनके द्वारा यह कहा गया कि कोई भी कहीं भी पड़ सकता है, इसी बात पर उनसे सवाल की गई कि क्या आप भारतीय जब सबसे बेहतर नहीं मानती कहां कमी रह गई जो बच्चे पड़ोसी राष्ट्र जाकर पढ़ते हैं तब जाकर उन्होंने जांच की बात कही,
जब इस संबंध में सीमा पर तैनात एसएसबी अधिकारी और जवानों से इस बात की जानकारी ली गई तो पड़ोसी राष्ट्र नेपाल की भद्रपुर से सिद्धार्थ शिशु सदन विद्यालय की बस बिना किसी परमिट और बिना किसी आदेश के प्रतिदिन कैसे भारतीय सीमा में प्रवेश कर नेपाल सीमा से सटे भात गांव पंचायत के गलगलिया बाजार से दर्जनों बच्चों को लेकर नेपाली शिक्षा दे रहे हैं। तो पहले तो उन्होंने इस मामले में कुछ कहने से बचते दिखे फिर इस बात पर कहा कि इसकी जांच की जाएगी और बस को भारतीय सीमा में प्रवेश करने से भी रोका जाएगा ।उन्होंने इस बात को भी स्वीकार किया कि यह कानूनी तौर पर सही नहीं है। वही इस संबंध में गलगलिया थाना में पदस्थापित थानाध्यक्ष खुशबू कुमारी से जब संपर्क साधा गया तो उन्होंने भी अपनी अनभिज्ञता प्रकट करते हुए जांच की बात बताई।
वही इस संबंध में जब नेपाली विद्यालय में पढ़ा रहे अपने बच्चों कि अभिभावकों से संपर्क साधा गया तो उन्होंने नाम नहीं बताने की शर्त पर बताया कि नेपाल में पढ़ाने का उद्देश्य यह है कि एक तो विद्यालय की दूरी बहुत कम पड़ती है और जो शिक्षा हमें यहा 2500 से ₹5000 खर्च कर मिलता है। वह शिक्षा नेपाल में 15 सो रुपए खर्च करने पर मिल जाता है और विद्यालय में भारतीय बच्चों से किसी भी प्रकार का डोनेशन नहीं लिया जाता है साथ ही साथ जो बच्चा जो छात्र अच्छे अंक से उतरी होते हैं उन्हें विदेशों में भी भेज कर पढ़ाने की व्यवस्था नेपाल सरकार द्वारा की जाती है। अभिभावकों ने बताया कि जहां तक सभ्यता और संस्कृति की बात है । तो बच्चो को हम लोग अपने घरों में साथ रखते हैं। और हमारे रहन-सहन खानपान ,सभ्यता और संस्कृति की भी जानकारी उन्हें समय-समय पर दीया जाता रहता है। वही बच्चों से जब सवाल की गई तो भारतीय राष्ट्रगान तक याद नहीं