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सीमावर्ती क्षेत्र गलगलिया में सोमवार को नहाए खाए के साथ ही चौठचंद्र पर्व शुरू हो गया है।

दीनानाथ शर्मा, बिहार ब्यूरो

सीमावर्ती क्षेत्र गलगलिया में सोमवार को नहाए खाए के साथ ही चौठचंद्र पर्व शुरू हो गया है। इसको लेकर बाजारों में खरीदारी के लिए काफी चहल-पहल रहा। मान्यता है की चौठचंद्र एक ऐसा पर्व है जिसमें चांद की पूजा बड़ी धूम-धाम से होती है। इस पर्व में सदियों से प्रकृति संरक्षण व उसके मान सम्मान को बढ़ावा दिया जाता है। अधिकांश पर्व त्यौहार मुख्य तौर पर प्रकृति से जुड़े होते हैं चाहे वह छठ में सूर्य की उपासना हो या चौरचन में चांद की पूजा का विधान है। बताया जाता है कि गणेश चतुर्थी के दिन चौठचंद्र पर्व मनाया जाता है। इस दिन लोग काफी उत्साह में दिखे लोग विधि विधान से चंद्रमा की पूजा करते हैं इसके लिए घर की महिलाओं द्वारा पूरा दिन व्रत रख शाम के समय चांद के साथ भगवान गणेश जी की पूजा अर्चना की गई। सूर्यास्त होने वह वह चंद्रमा के प्रकट होने पर घर के आंगन में सबसे पहले अरिपन कर कच्चे चावल को पीसकर अल्पना रंगोली बनाया गया। उस पर पूजन पाठ की सामग्री रखकर भगवान गणेश व चांद की पूजा की गई। इस पूजा में कई तरह के पकवान जिसमें खीर, पूरी, पिरुकिया व मिठाई में खाजा लड्डू व फल के तौर पर केला, खीरा, शेव, संतरा आदि चढ़ाया गया। पंडित सिद्धेश्वर नाथ द्विवेदी ने बताया कि चांद को शाप दिया गया था इस कारण इस दिन चांद को देखने से कलंक लगने का भय होता है परंपरा के अनुसार गणेश को देख कर चांद ने अपनी सुंदरता का घमंड करते हुए उनका मजाक उड़ाया इस पर भगवान गणेश ने क्रोधित होकर उन्हें यह शाप दिया कि चांद को देखने से लोगों को समाज से कलंकित होना पड़ेगा। इस शाप से मलित होकर चांद खुद को छोटा महसूस करने लगें शाप से मुक्ति पाने के लिए चांद ने भाद्र मास जिसे भादो कहते हैं की चतुर्थी तिथि को गणेश पूजा की तब जाकर भगवान गणेश जी ने कहा जो आज की तिथि में चांद की पूजा के साथ मेरी पूजा करेगा उसको कलंक नहीं लगेगा तब से यह प्रथा प्रचलित है।